विवादास्पद वर्तनियाँ
की और कि में अंतर :-
कि और की दोनों अलग अलग हैं। इनका प्रयोग भी अलग अलग स्थानों पर होता है। एक के स्थान पर दूसरे का प्रयोग ठीक नहीं समझा जाता है।
कि दो वाक्यों को जोड़ने का काम करता है। जैसे
उसने कहा कि कल वह नहीं आएगा। वह इतना हँसा कि गिर गया। यह माना जाता है कि कॉफ़ी का पौधा सबसे पहले ६०० ईस्वी में इथियोपिया के कफ़ा प्रांत में खोजा गया था।
की संबंध बताने के काम आता है। जैसे
राम की किताब, सर्दी की ऋतु, सम्मान की बात, वार्ता की कड़ी।
ये तथा यी के स्थान पर ए तथा ई :-
आजकल विभिन्न शब्दों में ये तथा यी के स्थान पर ए तथा ई का प्रयोग भी किया जाता है। उदाहरण
गयी तथा गई, आयेगा तथा आएगा आदि।
आधुनिक हिंदी में दिखायें, हटायें आदि के स्थान पर दिखाएँ, हटाएँ आदि का प्रयोग होता है। यदि ये और ए एक साथ अंत में आएँ जैसे किये गए हैं तो पहले स्थान पर ये और दूसरे स्थान पर ए का प्रयोग होता है।
परन्तु संस्कृत से हिंदी में आने वाले शब्दों (स्थायी, व्यवसायी, दायित्व आदि) में 'य' के स्थान पर 'इ' या 'ई' का प्रयोग अमान्य है।
कीजिए या करें :-
सामान्य रूप से लिखित निर्देश के लिए करें, जाएँ, पढें, हटाएँ, सहेजें इत्यादि का प्रयोग होता है। कीजिए, जाइए, पढ़िए के प्रयोग व्यक्तिगत हैं और अधिकतर एकवचन के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
जैसे कि, जो कि :-
यह दोनों ही पद बातचीत में बहुत प्रयोग होते हैं और इन्हें सामान्य रूप से गलत नहीं समझा जाता है, लेकिन लिखते समय जैसे कि और जो कि दोनों ही गलत समझे जाते हैं। अतः जैसे और जो के बाद कि शब्द का प्रयोग ठीक नहीं है।
विराम चिन्ह :-
सभी विराम चिन्हों जैसे विराम, अर्ध विराम, प्रश्न वाचक चिह्न आदि के पहले खाली जगह छोड़ना गलत है। खाली जगह विराम चिन्हों के बाद छोड़नी चाहिए। हिन्दी में किसी भी विराम चिह्न यथा पूर्णविराम, प्रश्नचिह्न आदि से पहले रिक्त स्थान नहीं आता। आजकल कई मुद्रित पुस्तकों, पत्रिकाओं में ऐसा होने के कारण लोग ऐसा ही टंकित करने लगते हैं जो कि गलत है। किसी भी विराम चिन्ह से पहले रिक्त स्थान नहीं आना चाहिये।
हिन्दी में लिखते समय देवनागरी लिपि के पूर्ण विराम (।) चिन्ह की जगह अंग्रेजी के full stop (.) का प्रयोग करना गलत है।
समुच्चय बोधक और संबंध बोधक शब्दों का प्रयोग :-
संबंध बोधक तथा दो वाक्यों को जोड़ने वाले समुच्चय बोधक शब्द जैसे ने, की, से, में इत्यादि अगर संज्ञा के बाद आते हैं तो अलग लिखे जाते हैं और सर्वनाम के साथ आते हैं तो साथ में। उदाहरण
अक्षरग्राम आधुनिक भारतीय स्थापत्य का अनुपम उदाहरण है। इसमें प्राचीन पारंपरिक शिल्प को भी समान महत्त्व दिया गया है। संस्थापकों ने पर्यटकों की सुविधा का ध्यान रखा है। हमने भी इसका लाभ उठाया, पूरी यात्रा में किसीको कोई कष्ट नहीं हुआ। केवल सुधा के पैरों में दर्द हुआ, जो उससे सहन नहीं हुआ। उसका दर्द बाँटने के लिए माँ थी। उसने, उसको गोद में उठा लिया।
अनुस्वार तथा पञ्चमाक्षर
पञ्चमाक्षरों के नियम का सही ज्ञान न होने से बहुधा लोग इनके आधे अक्षरों की जगह अक्सर 'न्' का ही गलत प्रयोग करते हैं जैसे 'पण्डित' के स्थान पर 'पन्डित', 'विण्डोज़' के स्थान पर 'विन्डोज़', 'चञ्चल' के स्थान पर 'चन्चल' आदि। ये अधिकतर अशुद्धियाँ 'ञ्' तथा 'ण्' के स्थान पर 'न्' के प्रयोग की होती हैं।
नियम: वर्णमाला के हर व्यञ्जन वर्ग के पहले चार वर्णों के पहले उस वर्ग का पाँचवा वर्ण आधा (हलन्त) होकर लगता है। अर्थात कवर्ग (क, ख, ग, घ, ङ) के पहले चार वर्णों से पहले आधा ङ (ङ्), चवर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) के पहले चार वर्णों से पहले आधा ञ (ञ्), टवर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण) के पहले चार वर्णों से पहले आधा ण (ण्), तवर्ग (त, थ, द, ध, न) के पहले चार वर्णों से पहले आधा न (न्) तथा पवर्ग (प, फ, ब, भ, म) के पहले चार वर्णों से पहले आधा म (म्) आता है। उदाहरण
कवर्ग - पङ्कज, गङ्गा
चवर्ग - कुञ्जी, चञ्चल
टवर्ग - विण्डोज़, प्रिण्टर
तवर्ग - कुन्ती, शान्ति
पवर्ग - परम्परा, सम्भव
आधुनिक हिन्दी में पञ्चमाक्षरों के स्थान पर सरलता एवं सुविधा हेतु केवल अनुस्वार का प्रयोग भी स्वीकार्य माना गया है। जैसे
पञ्कज - पंकज, शान्ति - शांति, परम्परा - परंपरा।
परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि पुरानी पारम्परिक वर्तनियाँ गलत हैं, नयी अनुस्वार वाली वर्तनियों को उनका विकल्प स्वीकारा गया है, पुरानी वर्तनियाँ मूल रुप में अधिक शुद्ध हैं। पञ्चमाक्षर के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग देवनागरी की सुन्दरता को कम करता है तथा शब्द का उच्चारण भी पूर्णतया शुद्ध नहीं रह पाता।
श्र और शृ
श्र तथा शृ भिन्न हैं। श्र में आधा श और र मिला हुआ है जैसे श्रम में। शृ में पूरे श में ऋ की मात्रा लगी है जैसे शृंखला या शृंगार में। अधिकतर सामान्य लेखन तथा कम्