Thursday, 9 June 2016

सामान्य गलतियाँ

विवादास्पद वर्तनियाँ

की और कि में अंतर :-

कि और की दोनों अलग अलग हैं। इनका प्रयोग भी अलग अलग स्थानों पर होता है। एक के स्थान पर दूसरे का प्रयोग ठीक नहीं समझा जाता है।

कि दो वाक्यों को जोड़ने का काम करता है। जैसे

उसने कहा कि कल वह नहीं आएगा। वह इतना हँसा कि गिर गया। यह माना जाता है कि कॉफ़ी का पौधा सबसे पहले ६०० ईस्वी में इथियोपिया के कफ़ा प्रांत में खोजा गया था।

की संबंध बताने के काम आता है। जैसे

राम की किताब, सर्दी की ऋतु, सम्मान की बात, वार्ता की कड़ी।

ये तथा यी के स्थान पर ए तथा ई :-

आजकल विभिन्न शब्दों में ये तथा यी के स्थान पर ए तथा ई का प्रयोग भी किया जाता है। उदाहरण

गयी तथा गई, आयेगा तथा आएगा आदि।

आधुनिक हिंदी में दिखायें, हटायें आदि के स्थान पर दिखाएँ, हटाएँ आदि का प्रयोग होता है। यदि ये और ए एक साथ अंत में आएँ जैसे किये गए हैं तो पहले स्थान पर ये और दूसरे स्थान पर ए का प्रयोग होता है।

परन्तु संस्कृत से हिंदी में आने वाले शब्दों (स्थायी, व्यवसायी, दायित्व आदि) में 'य' के स्थान पर 'इ' या 'ई' का प्रयोग अमान्य है।

कीजिए या करें :-

सामान्य रूप से लिखित निर्देश के लिए करें, जाएँ, पढें, हटाएँ, सहेजें इत्यादि का प्रयोग होता है। कीजिए, जाइए, पढ़िए के प्रयोग व्यक्तिगत हैं और अधिकतर एकवचन के रूप में प्रयुक्त होते हैं।

जैसे कि, जो कि :-

यह दोनों ही पद बातचीत में बहुत प्रयोग होते हैं और इन्हें सामान्य रूप से गलत नहीं समझा जाता है, लेकिन लिखते समय जैसे कि और जो कि दोनों ही गलत समझे जाते हैं। अतः जैसे और जो के बाद कि शब्द का प्रयोग ठीक नहीं है।

विराम चिन्ह :-

सभी विराम चिन्हों जैसे विराम, अर्ध विराम, प्रश्न वाचक चिह्न आदि के पहले खाली जगह छोड़ना गलत है। खाली जगह विराम चिन्हों के बाद छोड़नी चाहिए। हिन्दी में किसी भी विराम चिह्न यथा पूर्णविराम, प्रश्नचिह्न आदि से पहले रिक्त स्थान नहीं आता। आजकल कई मुद्रित पुस्तकों, पत्रिकाओं में ऐसा होने के कारण लोग ऐसा ही टंकित करने लगते हैं जो कि गलत है। किसी भी विराम चिन्ह से पहले रिक्त स्थान नहीं आना चाहिये।

हिन्दी में लिखते समय देवनागरी लिपि के पूर्ण विराम (।) चिन्ह की जगह अंग्रेजी के full stop (.) का प्रयोग करना गलत है।

समुच्चय बोधक और संबंध बोधक शब्दों का प्रयोग :-

संबंध बोधक तथा दो वाक्यों को जोड़ने वाले समुच्चय बोधक शब्द जैसे ने, की, से, में इत्यादि अगर संज्ञा के बाद आते हैं तो अलग लिखे जाते हैं और सर्वनाम के साथ आते हैं तो साथ में। उदाहरण

अक्षरग्राम आधुनिक भारतीय स्थापत्य का अनुपम उदाहरण है। इसमें प्राचीन पारंपरिक शिल्प को भी समान महत्त्व दिया गया है। संस्थापकों ने पर्यटकों की सुविधा का ध्यान रखा है। हमने भी इसका लाभ उठाया, पूरी यात्रा में किसीको कोई कष्ट नहीं हुआ। केवल सुधा के पैरों में दर्द हुआ, जो उससे सहन नहीं हुआ। उसका दर्द बाँटने के लिए माँ थी। उसने, उसको गोद में उठा लिया।

अनुस्वार तथा पञ्चमाक्षर

पञ्चमाक्षरों के नियम का सही ज्ञान न होने से बहुधा लोग इनके आधे अक्षरों की जगह अक्सर 'न्' का ही गलत प्रयोग करते हैं जैसे 'पण्डित' के स्थान पर 'पन्डित', 'विण्डोज़' के स्थान पर 'विन्डोज़', 'चञ्चल' के स्थान पर 'चन्चल' आदि। ये अधिकतर अशुद्धियाँ 'ञ्' तथा 'ण्' के स्थान पर 'न्' के प्रयोग की होती हैं।

नियम: वर्णमाला के हर व्यञ्जन वर्ग के पहले चार वर्णों के पहले उस वर्ग का पाँचवा वर्ण आधा (हलन्त) होकर लगता है। अर्थात कवर्ग (क, ख, ग, घ, ङ) के पहले चार वर्णों से पहले आधा ङ (ङ्), चवर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) के पहले चार वर्णों से पहले आधा ञ (ञ्), टवर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण) के पहले चार वर्णों से पहले आधा ण (ण्), तवर्ग (त, थ, द, ध, न) के पहले चार वर्णों से पहले आधा न (न्) तथा पवर्ग (प, फ, ब, भ, म) के पहले चार वर्णों से पहले आधा म (म्) आता है। उदाहरण

कवर्ग - पङ्कज, गङ्गा
चवर्ग - कुञ्जी, चञ्चल
टवर्ग - विण्डोज़, प्रिण्टर
तवर्ग - कुन्ती, शान्ति
पवर्ग - परम्परा, सम्भव

आधुनिक हिन्दी में पञ्चमाक्षरों के स्थान पर सरलता एवं सुविधा हेतु केवल अनुस्वार का प्रयोग भी स्वीकार्य माना गया है। जैसे

पञ्कज - पंकज, शान्ति - शांति, परम्परा - परंपरा।

परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि पुरानी पारम्परिक वर्तनियाँ गलत हैं, नयी अनुस्वार वाली वर्तनियों को उनका विकल्प स्वीकारा गया है, पुरानी वर्तनियाँ मूल रुप में अधिक शुद्ध हैं। पञ्चमाक्षर के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग देवनागरी की सुन्दरता को कम करता है तथा शब्द का उच्चारण भी पूर्णतया शुद्ध नहीं रह पाता।

श्र और शृ

श्र तथा शृ भिन्न हैं। श्र में आधा श और र मिला हुआ है जैसे श्रम में। शृ में पूरे श में ऋ की मात्रा लगी है जैसे शृंखला या शृंगार में। अधिकतर सामान्य लेखन तथा कम्

स्वर

स्वतंत्र रूप से बोले जाने वाले वर्ण 'स्वर' कहलाते हैं।
व्याकरण में परम्परागत रूप से स्वरों की संख्या 11 मानी गई है।
अ, आ, इ, ई, उ,
ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ,

स्वरों के भेद
स्वरों के दो भेद होते हैं।

ह्रस्व स्वर
वह स्वर जिनको सबसे कम समय में उच्चारित किया जाता है। ह्रस्व स्वर कहलाते हैं।
जैसे- अ, इ, उ, ऋ
दीर्घ स्वर
वह स्वर जिनको बोलने में ह्रस्व स्वरों से अधिक समय लगता है।
जैसे- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ

हिन्दी वर्णमाला में ५२ अक्षर होते है , जो कि निम्न है :-
स्वर :-
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः ऋ ॠ ऌ ॡ

व्यंजन :-

क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण (ड़, ढ़)
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
स श ष ह
क्ष त्र ज्ञ

नोट :- यह वर्णमाला देवनागरी लिपि की है। देवनागरी लिपि में संस्कृत,मराठी,कोंकणी ,नेपाली,मैथिली आदि भाषाएँ लिखी जाती है।यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात है कि हिंदी में ॠ ऌ ॡ का प्रयोग प्रायः नहीं होता।

हिन्दी वर्णमाला में ११ स्वर तथा ३३ व्यंजन गिनाए जाते हैं, परन्तु इनमें ड़्, ढ़्, अं, तथा अः जोड़ने पर हिन्दी के वर्णों की कुल संख्या ४८ हो जाती है।

पंचमाक्षर

पंचमाक्षर अर्थात वर्णमाला में किसी वर्ग का पाँचवाँ व्यंजन। जैसे- 'ङ', 'ञ', 'ण' आदि। आधुनिक हिन्दी में पंचमाक्षरों का प्रयोग बहुत कम हो गया है और इसके स्थान पर अब बिन्दी (ं) का प्रचलन बढ़ गया है।

प्रयोग
कई शब्दों में शिरोरेखा के ऊपर एक बिन्दु (अनुस्वार) का प्रयोग किया जाता है, जैसे-

गंगा गड्.गा
झंडा झण्डा
चंचल चञ़्चल
मंद मन्द
संबल सम्बल
गंगा (ग ड्.गा), झंडा (झण्डा), चंचल (चञ़्चल), मंद (मन्द), संबल (सम्बल) आदि वर्णों में अनुस्वार (ॱ ) के बाद आने वाले वर्ण का सम्बन्ध जिस वर्ग के साथ है, अनुस्वार उसी वर्ग के पाँचवें वर्ण के स्थान-पर प्रयुक्त हो रहा है। यही पंचम वर्ण के प्रयोग का नियम है।[1]
वर्ग वर्ण
‘क’ वर्ग क् ख् ग् घ् ङ्
‘च’ वर्ग च् छ् ज् झ् ञ़्
‘ट‘ वर्ग ट् ठ् ड् ढ् ण्
‘त’ वर्ग त् थ् द् ध् न्
‘प’ वर्ग प् फ् ब् भ् म्
बिन्दी का प्रयोग
आजकल पंचमाक्षरों के बदले में बिन्दी का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। इसका प्रयोग निम्नानुसार होता है-

'क' वर्ग के पहले चार अक्षरों (क, ख, ग, घ) के साथ जब इसका पंचमाक्षर 'ङ' संयुक्त होता है, तब ङ् (आधा ङ) के बदले में बिन्दी का प्रयोग होता है।[2]
उदाहरण
अङ्क = अंक, शङ्ख = शंख, गङ्गा = गंगा, सङ्घ = संघ।
'च' वर्ग के पहले चार अक्षरों (च, छ, ज, झ) के साथ जब इसका पंचमाक्षर 'ञ' संयुक्त होता है, तब ञ् (आधा ञ) के बदले में बिन्दी का प्रयोग होता है।
उदाहरण
चञ्चल = चंचल, अञ्जन = अंजन
'ट' वर्ग के पहले चार अक्षरों (ट, ठ, ड, ढ) के साथ जब इसका पंचमाक्षर 'ण' संयुक्त होता है, तब ण् (आधा ण) के बदले में बिन्दी का प्रयोग होता है।
उदाहरण
घण्टी = घंटी, कण्ठ = कंठ, ठण्ड = ठंड
'त' वर्ग के पहले चार अक्षरों (त, थ, द, ध) के साथ जब इसका पंचमाक्षर 'न' संयुक्त होता है, तब न् (आधा न) के बदले में बिन्दी का प्रयोग होता है।
उदाहरण
दन्त = दंत, ग्रन्थ = ग्रंथ, हिन्दी = हिंदी, गन्ध = गंध।
'प' वर्ग के पहले चार अक्षरों (प, फ, ब, भ) के साथ जब इसका पंचमाक्षर 'म' संयुक्त होता है, तब म् (आधा म) के बदले में बिन्दी का प्रयोग होता है।
उदाहरण
चम्पा = चंपा, गुम्फ = गुंफ, अम्बा = अंबा, आरम्भ = आरंभ।
उपर्युक्त नियम संस्कृतनिष्ठ शब्दों पर लागू होते हैं। अन्य शब्दों पर बिन्दी का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा सकता है। जहाँ पंचमाक्षर अपने वर्ग के चार अक्षरों के अतिरिक्त किसी और अक्षर के साथ संयुक्त हो रहा हो, वहाँ बिन्दी के प्रयोग की अनुमति नहीं है। जैसे- वाङ्मय, अन्य, उन्मुख इत्यादि। पंचम वर्ण जब दुबारा आये, तब भी बिन्दी का प्रयोग नहीं होता, जैसे- अन्न, सम्मेलन, सम्मति इत्यादि।

श्रुतिसमभिन्नार्थक

श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द :- ये शब्द चार शब्दों से मिलकर बना है ,श्रुति+सम +भिन्न +अर्थ , इसका अर्थ है . सुनने में समान लगने वाले किन्तु भिन्न अर्थ वाले दो शब्द अर्थात वे शब्द जो सुनने और उच्चारण करने में समान प्रतीत हों, किन्तु उनके अर्थ भिन्न -भिन्न हों , वे श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द कहलाते हैं .

ऐसे शब्द सुनने या  उच्चारण करने में समान भले प्रतीत हों ,किन्तु समान होते नहीं हैं , इसलिए उनके अर्थ में भी परस्पर भिन्नता होती है ; जैसे - अवलम्ब और अविलम्ब . दोनों शब्द सुनने में समान लग रहे हैं , किन्तु वास्तव में समान हैं नहीं ,अत: दोनों शब्दों के अर्थ भी पर्याप्त भिन्न हैं , 'अवलम्ब ' का अर्थ है - सहारा , जबकि  अविलम्ब का अर्थ है - बिना विलम्ब के अर्थात शीघ्र .

ये शब्द निम्न इस प्रकार से है -

अंस - अंश = कंधा - हिस्सा

अंत - अत्य = समाप्त - नीच

अन्न -अन्य = अनाज -दूसरा

अभिराम -अविराम = सुंदर -लगातार

अम्बुज - अम्बुधि = कमल -सागर

अनिल - अनल = हवा -आग

अश्व - अश्म = घोड़ा -पत्थर

अनिष्ट - अनिष्ठ = हानि - श्रद्धाहीन

अचर - अनुचर = न चलने वाला - नौकर

अमित - अमीत = बहुत - शत्रु

अभय - उभय = निर्भय - दोनों

अस्त - अस्त्र = आँसू - हथियार

असित - अशित = काला - भोथरा

अर्घ - अर्घ्य = मूल्य - पूजा सामग्री

अली - अलि = सखी - भौंरा

अवधि - अवधी = समय - अवध की भाषा

आरति - आरती = दुःख - धूप-दीप

आहूत - आहुति = निमंत्रित - होम

आसन - आसन्न = बैठने की वस्तु - निकट

आवास - आभास = मकान - झलक

आभरण - आमरण = आभूषण - मरण तक

आर्त्त - आर्द्र = दुखी - गीला

ऋत - ऋतु = सत्य - मौसम

कुल - कूल = वंश - किनारा

कंगाल - कंकाल = दरिद्र - हड्डी का ढाँचा

कृति - कृती = रचना - निपुण

कान्ति - क्रान्ति = चमक - उलटफेर

कलि - कली = कलयुग - अधखिला फूल

कपिश - कपीश = मटमैला - वानरों का राजा

कुच - कूच = स्तन - प्रस्थान

कटिबन्ध - कटिबद्ध = कमरबन्ध - तैयार / तत्पर

छात्र - क्षात्र = विधार्थी - क्षत्रिय

गण - गण्य = समूह - गिनने योग्य

चषक - चसक = प्याला - लत

चक्रवाक - चक्रवात = चकवा पक्षी - तूफान

जलद - जलज = बादल - कमल

तरणी - तरुणी = नाव - युवती

तनु - तनू = दुबला - पुत्र

दारु - दारू = लकड़ी - शराब

दीप - द्वीप = दिया - टापू

दिवा - दीवा = दिन - दीपक

देव - दैव = देवता - भाग्य

नत - नित = झुका हुआ - प्रतिदिन

नीर - नीड़ = जल - घोंसला

नियत - निर्यात = निश्चित - भाग्य

नगर - नागर = शहर - शहरी

निशित - निशीथ = तीक्ष्ण - आधी रात

नमित - निमित = झुका हुआ - हेतु

नीरद - नीरज = बादल - कमल

नारी - नाड़ी = स्त्री - नब्ज

निसान - निशान = झंडा - चिन्ह

निशाकर - निशाचर = चन्द्रमा - राक्षस

पुरुष - परुष = आदमी - कठोर

प्रसाद - प्रासाद = कृपा - महल

परिणाम - परिमाण = नतीजा - मात्रा

ध्वनियाँ

हिंदी की देवनागरी लिपि में कुल 52 वर्ण हैं। यह वर्णमाला इस प्रकार है:

स्वर :- अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ऋ , ए , ऐ , ओ , औ ( कुल = 11)

अनुस्वार:- अं     (कुल  = 1)

विसर्ग:- अ: ( : )  (कुल  = 1)

व्यंजन:-

कंठ्य :-                                      क , ख, ग, घ, ड़      = 5

तालव्य :-                                   च , छ, ज, झ, ञ     = 5

मूर्धन्य :-                                    ट , ठ , ड , ढ , ण    = 5

दन्त्य :-                                     त , थ , द , ध , न    = 5

ओष्ठ्य :-                                   प , फ , ब , भ , म   = 5

अन्तस्थ :-                                 य , र , ल , व         = 4

ऊष्म :-                                      श , स , ष , ह        = 4

संयुक्त व्यंजन: -                           क्ष , त्र , ज्ञ , श्र       = 4

द्विगुण व्यंजन: -                          ड़ , ढ़                    = 2

                                                                  
                                                                     कुल वर्ण: 52

स्वर ध्वनियों के उच्चारण में किसी अन्य ध्वनि  की सहायता नहीं ली जाती। वायु मुख विवर में बिना किसी अवरोध के बाहर निकलती है, किन्तु व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरों की सहायता ली जाती है।

व्यंजन वह ध्वनि है जिसके उच्चारण में भीतर से आने वाली वायु मुख विवर में कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में बाधित होती है।

अल्पप्राण व् महाप्राण व्यंजन

अल्पप्राण और महाप्राण :- जिन वर्णों के उच्चारण में मुख से कम श्वास निकले उन्हें  'अल्पप्राण ' कहते हैं ! और जिनके उच्चारण में अधिक श्वास निकले उन्हें ' महाप्राण 'कहते हैं!
ये वर्ण इस प्रकार है -

      अल्पप्राण                          महाप्राण

     क , ग , ङ                          ख , घ

     च , ज , ञ                         छ , झ

     ट , ड , ण                          ठ , ढ

     त , द , न                          थ , ध

     प , ब , म                          फ , भ

     य , र , ल , व                      श , ष , स , ह

घोष व् अघोष व्यंजन

घोष और अघोष :- ध्वनि की दृष्टि से जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण में स्वरतन्त्रियाँ झंकृत होती है , उन्हें ' घोष ' कहते है और जिनमें स्वरतन्त्रियाँ झंकृत नहीं होती उन्हें ' अघोष ' व्यंजन कहते हैं ! ये घोष - अघोष व्यंजन इस प्रकार हैं -

       घोष                         अघोष

   ग , घ ,  ङ                    क , ख
 
   ज , झ ,  ञ                   च , छ

   ड , द , ण , ड़ , ढ़            ट , ठ

   द , ध , न                      त , थ

   ब , भ , म                      प , फ

   य , र , ल , व , ह             श , ष , स

नोट- व्यंजनों की प्रत्येक लाइन के पहले दो अक्षर तथा तीनो स श ष अघोष ।
और शेष व्यंजन घोष होते है।